छत्तीसगढ़ को लूटने आए, बिहारी छत्रपति ।कृषि विभाग का बाबू निकला, करोड़पति ।। छत्तीसगढ़ शासन के कृषि विभाग सरगुजा, अंबिकापुर का संज्ञान में आया एक गंभीर मामला। भ्रष्टाचार में जुटा था कृषि संभागीय अधिकारी
अंबिकापुर l दिनांक 30.10.24---
अमला ।।
प्राप्त जानकारी के अनुसार बिहार प्रदेशी प्रेमनाथ सिंह को वर्ष 2007-08 में संयुक्त संचालक कृषि संभाग सरगुजा अंबिकापुर के द्वारा कार्यालय में चपरासी के पद पर, अपने ही कार्यालय में नियुक्त किया गया था। दिनांक 31.7.13 को चपरासी से सहायक ग्रेड 3 लिपिक के पद पर पदोन्नति हेतु 10 चपरासियों की चयनित सूची में 11 नंबर पर एकमात्र प्रतीक्षा सूची में प्रेमनाथ सिंह का नाम था। भ्रष्टाचार उपरांत 1 से 10 चयनित चपरासियों के आदेश जारी नहीं किए गए थे। केवल एकमात्र आदेश क्रमांक 1387 दिनांक 31.7.13 सलंग्न पत्र के द्वारा प्रेमनाथ सिंह को सहायक ग्रेड - 3 के पद पर सहायक भूमि संरक्षण अधिकारी सूरजपुर जिला सूरजपुर में पदस्थ किया गया था, किंतु कुछ समय बाद ही उसे संभागीय कृषि कार्यालय अंबिकापुर में वापस रख लिया गया था। यह अज्ञात है कि उसे संलग्नीकारण या स्थानांतरण की किस विधि से संभागीय कार्यालय में वापस रखा गया था। ज्ञात जानकारी के अनुसार चपरासी पद से ही संभागीय कार्यालय में रहने के कारण बाबू बनने के उपरांत, उसने रौबदारी की बढ़ोतरी करके और अधिकारियों की सेवादारी से रंगदारी भी, 5 - 6 जिलों के अधीनस्थ कार्यालयों, अधिकारियों, कर्मचारियों से उनके विभिन्न प्रकार के प्रकरणों में अपने स्थापना, लेखा शाखा सहित कई कक्ष के कार्यों को करने हेतु नियमों तथा नियम विरुद्ध कृत्यों के द्वारा, परेशान एवं प्रताड़ित कर करके खींचकर मोटी वसूली अभियान चलाया जाता रहा है। संभागीय अधिकारियों की चापलूसी एवं दलाली एजेंट के रूप में प्रेमनाथ का बसूली अभियान तूफानी पर लगने से द्रुतगामी हो गया था, जिसका परिणाम संबंधी- प्रेमनाथ सिंह के द्वारा प्रदत्त दस्तावेजों के अनुसार शासन को दी गई जानकारी में उसने उसके नाम पर चल अचल संपत्ति विवरण में निरंक दर्शाया गया है, किंतु एक पोकलेन मशीन एवं 5 जे सी बी मशीन तथा चार-पांच फोर व्हीलर किराए पर चलने की जानकारी के साथ ही एक आलीशान भवन लाल बहादुर शास्त्री वार्ड क्रमांक 30 मायापुर अंबिकापुर में है, यह सब चल - अचल संपत्ति प्रेमनाथ सिंह की पत्नी कमला सिंह के नाम पर होना चाहिए, क्योंकि प्रेमनाथ सिंह शासन को अपने नाम पर अचल संपत्ति विवरण में निरंक दर्शाते हैं। इनके दो मोबाइल नंबरों 88 15 302 304 एवं 7000 4955 08 है, जिनमें से बाद वाला नंबर 7004 955 0 8 जेसीबी एवं पोकलेन मशीनों को किराए पर लेने हेतु संपर्क करने के जारी विज्ञापन में इंटरनेशनल इंजीनियरिंग का संलग्न फोटो में स्पष्ट दर्शाया गया है, जिससे उनकी पांच जेसीबी मशीन एवं पोकलेन मशीन किराए पर चलना सिद्ध होता है, जो एक चपरासी - बाबू के लिए आय से अधिक संपत्ति एवं बेनामी संपत्ति एकत्रित करने का स्पष्ट मामला दिखाई देता है। ऐसे अधिक एवं बेनामी संपत्ति के संबंध में जानकारी जुटाने एवं शिकायतें करने पर विगत एक - डेढ़ साल से विष्णुदेव साय, मुख्यमंत्री, राम विचार नेताम,कृषि मंत्री, अमिताभ जैन, मुख्य सचिव कृषि सचिव - कृषि उत्पादन आयुक्त, संचालक कृषि, रायपुर एवं संयुक्त संचालक कृषि, अंबिकापुर, के नाम से, ए.सी.बी. अंबिकापुर सहित सभी को पंजीकृत डाक से शिकायत भेजने और आर.टी.ओ., अंबिकापुर, आयुक्त नगर निगम अंबिकापुर, कलेक्टर अंबिकापुर, से सूचना के अधिकार में जानकारी मांगे जाने पर जानकारी देने से इनकार करके, उपरोक्त सबके द्वारा आज तक कोई कार्यवाही नहीं की गई है एवं आरटीआई अंतर्गत भी जानकारी प्रदाय नहीं की गई है जिससे यह स्पष्ट होता है कि शासन, प्रशासन कितना चुस्त, दुरुस्त, मुस्तैद है जो कि छत्तीसगढ़ के आदिवासी लोगों को एवं उनकी धन संपदा को लूटने आए अन्य प्रदेशी ऐसे लोगों को बचाने में, भ्रष्टाचार करने देते रहने में, छत्तीसगढ़ के ही जिम्मेदार नेताओं, अधिकारियों के द्वारा बचाव किया जा रहा है। प्रेमनाथ सिंह की विभागीय जांच, उनको तत्काल निलंबित करके की जावे, तो सैकड़ो, हजारों फर्जी एवं नियम विरुद्ध प्रकरणों के मामले कृषि संभाग सरगुजा के अंदर तथा संभागीय कृषि कार्यालय में पाए जाएंगे, प्रेमनाथ सिंह ने स्वयं फर्जी नौकरी, एवं पदोन्नति फर्जी तरीके से अधिकारियों की मिलीभगत से पाई है, वरना आज भी चपरासी के चपरासी ही रहते। और आगे जांच में दोषी पाए जाने पर, बल्कि पाए जाएंगे ही, तो चपरासी भी नहीं रह जाएंगे। चपरासी भी नहीं रह पाएंगे। प्रेमनाथ सिंह के द्वारा चंद्रकांत नेताम एवं पुष्पेंद्र प्रताप सिंह चौहान को वर्ष 2007-08 से परिवीक्षा अवधि 2 वर्ष की समय अवधि में समाप्त कर दी जाती, तो जो वे दोनों 15 - 17 वर्षों तक सहायक ग्रेड 3 पर रहने से 2 के पद पर नहीं हो पाए, उनकी जगह प्रेमनाथ सिंह सहायक ग्रेड दो पदोन्नति लेकर, संभागीय कृषि कार्यालय में पूरी तानाशाही के साथ हिटलर की तरह राज करने लगा। आदतन फर्जीकरण नहीं करते, तो प्रेमनाथ वो सब नहीं कर पाते, जो उल्लेखित किया जा रहा है। प्रेमनाथ सिंह के साले वीरेंद्र सिंह को भी इसी संभागीय कार्यालय में प्रेमनाथ सिंह ने पदस्थ कर के रखे हुए हैं, जो प्रेमनाथ सिंह के दुष्कृतयों एवं काली करतूतों में बराबर का भागीदार के रूप में शामिल हैं। यह भी ज्ञात हुआ है कि लेखापाल पद पर रहते हुए प्रेमनाथ सिंह के द्वारा कई देयकों को कई बार पुनरावृत्ति करके आहरण किया जाता रहा है। देयकों को कई बार पुनरावृत्ति करके आहरण करने की जानकारी प्रेमनाथ के शागिर्द डी. ऐन. पन्ना, सहायक संचालक कृषि और उनके लेखापाल, दोनों कार्यालय उप संचालक कृषि जशपुर के द्वारा भी कई वर्षों से करते रहना, जानकारी ज्ञात हुई है। ये गंभीर वित्तीय अनियमितता बनाम सरकारी धन के गबन का मामला बनता है। प्रेमनाथ सिंह के द्वारा शिवानी नरवरिया की अनुकंपा नियुक्ति को तथा पुष्पेंद्र प्रताप सिंह एवं चंद्रकांत नेताम तथा श्रवण कुमार जैसे अनेकों की परिवीक्षा अवधि को तथा अनूप कुमार मेश्राम का प्रथम एवं द्वितीय समयमान वेतनमान नहीं देने, जैसे कई प्रकरणों को, रश्मि चौरसिया के नौकरी से अनेक वर्षों से आज तक तक गायब रहने पर भी कोई कार्रवाई नहीं करने को, लटका कर रखा गया है, जिससे ततसमय पदस्थ समस्त संभागीय अधिकारियों एवं उनके निचले दर्जे के पदस्थ अधिकारियों की भी पूरी मिली भगत के बिना, प्रेम नाथ सिंह इतना शक्तिशाली चपरासी - बाबू नहीं होता? सुशासन वाली भाजपा ने, भ्रष्टाचार मुक्त मोदी गारंटी प्रीत, भाजपा सरकार तत्काल प्रेमनाथ सिंह को निलंबित करके तथा समस्त तत्कालीन संभागीय कृषि अधिकारियों एवं उनके अधीनस्थ तत्कालीन अधिकारियों पर भी निलंबन की गाज गिराकर मंत्रालयीन ईमानदार छवि वाले प्रशासनिक उच्चतम अधिकारी से सूक्ष्म जांच कर कर कड़ी दंडात्मक कार्यवाही करने का दम दिखाकर छत्तीसगढ़ के नागरिकों को एवं उनकी धन संपदा तथा अधिकारों को लूटने वालों की नाक में नकेल कसने का अपना उत्तरदायित्व पूर्ण करने का कर्तव्य और दायित्व निभाए, अन्यथा सरकार भी प्रेमनाथ सिंह के भ्रष्टाचारी दुष्कृतयों को करने एवं बचाने की मिली भगत में शामिल मानी जावेगी, ऐसा जनता क्यों ना सोचे और माने? नेता जो बाद में सरकार बन जाते हैं, बिना सरकार में, सड़क पर रहते हुए अच्छी तरह जानते हैं कि 99 प्रतिशत अधिकारी, कर्मचारी भ्रष्टाचारी हैं या जिनको इसका मौका नहीं मिलता है तो वे कामचोरी करते हैं, अरुचिपूर्ण पैंडिंग पद्धति से लापरवाहीपूर्वक, गोल रहकर, निजी कार्यों, धंधों में लिप्त रहते हुए बतौर एडिशनल वर्क समझकर सरकारी काम करते हैं, या नहीं भी करते हैं, कहने का तात्पर्य यह है कि सब जानकर भी धृतराष्ट और भीष्म की भूमिका में क्यों अचेतन, शून्य बने रहते हैं? जबकि सरकार पूर्ण शक्तिशाली होती हैं, सरकार अधिकारियों से है या अधिकारी सरकार से हैं, सरकार को यही निर्णय पहले कर लेना चाहिए। सरकारों को यह भ्रम है कि अधिकारी ही उनके असली माई बाप हैं, इसलिए माई बाप कुछ भी करें? सात खून माफ होने के अभय वरदान के फलस्वरूप ही सब भ्रष्टाचारियों को बचाने का एक ही जुमला होता हैं कि शिकायत आएगी तो जांच कर कार्यवाही की जावेगी, किसी को, दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा, बख्शा तो तब ना जाएगा, जब जांच में दोषी पाया जाएगा? जब जांच की प्रक्रिया ही ऐसी होती है कि दोषी ही नहीं कोई होता है, तथा जांच का जिम्मा भी उन्हीं को या उनके अधिकारियों को ही दे दिया जाता है तो निष्पक्ष जांच, और निष्पक्ष कार्यवाही का सवाल ही नहीं होता है। इसलिए भ्रष्टाचार अपनी चरम पराकाष्ठा पर होने के बावजूद भी, भ्रष्टाचार कोई नहीं करता है, न कही दिखता है? आपने कभी हवा को देखा है? नहीं ना, क्या यही सुशासन है ? क्या ऐसे ही भ्रष्टाचार मुक्त आम जनता का काम होता है ?सरकार बता दे? बस...
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