जहर उगलती हुई नजर आई उद्योगों की प्रदूषण भरी चिमनिया आसपास के जनता जीवन जीने को मजबूर जनप्रतिनिधियों में आखिर चुप्पी क्यों?
रायपुर /सिलतरा,धरसीवां,सिलयारी
। राजधानी रायपुर के सबसे करीब के औद्योगिक क्षेत्र सिलतरा धरसींवा जो आज प्रमुख औद्योगिक क्षेत्र के काला डस्ट और धुँआ पर्यावरण के नजरिये से स्थानीय लोगों व किसानों के लिए अभिशाप बन चुका है। प्रदूषण के चलते क्षेत्र की अधिकतर बड़ी औद्योगिक इकाइयों की चिमनियां व इस्पात से जुड़े उद्योग रात-दिन जहर उगल रही है। वहीं ज्यादातर उद्योगों से निकलने वाला खतरनाक वैस्ट मैटिरियल क्षेत्र की हवा को विषैला कर रहा है। जंहा क्षेत्र के लगभग साँकरा सिलतरा, मुरेठी , बहेसर,चरौदा, धरसीवा, मांढर,टाड़ा , मोहंदी दर्जन भर से ऊपर का गांव की अस्तित्व को बचाए रखने का संकट खड़ा हो गया है। कभी कृषि के लिए क्षेत्र की पहचान अब अभिशाप बन गया है। स्थानीय नेता दुर्गा प्रसाद बंजारे ने बताया क्षेत्र की उद्योग रात के अंधेरे में दस्त छोड़ा जाता है कोई भी उद्योग मशीन का प्रयोग नहीं करता लेकिन उद्योगों ऐसे दर्जन पर उद्योग है जिसे धान के भूसे पर चलने की अनुमति मिली है लेकिन क्षेत्र में भारी भयंकर प्रदूषण फैला रहे हैं क्योंकि ऐसा ही रहा तो एक समय में यहां के लोगों की आयु कम हो जाएगी कम उम्र में ही लोग बीमार पड़ने लग जाएंगे सिलतरा क्षेत्र के शासकीय भूमि की देख भाल का जिम्मा सीएसआईडीसी विभाग और पर्यावरण की देखभाल की जिम्मेदारी पर्यावरण विभाग की है जंहा सीएसआईडीसी विभाग की मेहरबानी से करोड़ो की जमीन पर काले धंधे वालो को किराये से दे रखा है। जो क्षेत्र में प्रदूषण को और ज्यादा घातक बनाने में स्थानीय कोल कबाड़ी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं। चूंकि ज्यादातर इकाइयां अपना खतरनाक बेस्ट मैटिरियल व प्लास्टिक वेस्ट वेस्ट मैनेजमेंट इनके पास ही बेच देते हैं। जो स्थानीय कबाडि को लाभ कमाने के नजरिये से बेच देते हैं।
उद्योग से निकलने वाली वेस्ट मटेरियल को लेकर सरकार द्वारा
वेस्ट मैनेजमेंट व प्रदूषण नियंत्रण को लेकर अच्छे नियम बनाए गए हैं, मगर उन नियमों को ताक पर रखकर औद्योगिक इकाइयां लगातार प्रदूषण फैला रही हैं। सवाल तो यह भी उठता है कि जब कोई कोई भी उद्योग को उद्योग चलाने की अनुमति मिलती है तो उसके प्लान में डंपिंग साइट क्यों नहीं दिखाई गई है। कोल से काली कमाई करने के लिए इन लोगो के द्वारा हजारो टनों के खतरनाक कचरा खुले प्लाटों में रखा गया है। जब बारिश या तुफान आता है, तो यह वेस्ट व प्लास्टिक मैटिरियल उडकर खेतों में पहुंच जाता है। अब किसानों की जमीनों के हालात इतने बदतर हो चुके हैं कि इस वेस्ट के कारण जमीन की उर्वरा शक्ति भी गौण हो चुकी है। वहीं कहने को तो राजधानी से लेकर विधानसभा तक कई विभागों में इसमें जिला पंचायत से लेकर जनपद पंचायत स्तर तक कई समिति, उद्योग व पर्यावरण गठन किया गया है। मगर इनका कितना सरोकार है यह तो यहां की स्थानीय जनता भली भांति जानती है। हरियाली के नाम पर किसी भी औद्योगिक इकाई द्वारा खाली पड़ी जमीनों पर कोई भी पौधा लगाने की चेष्टा नहीं की गई है। यहां तक कि स्थानीय जनता फैक्ट्रियों द्वारा फैलाये जा रहे प्रदूषण को झेल रही है। मगर शायद ही कोई उद्योग होगा जो आसपास की जगहों पर पर्यावरण की सुरक्षा के कोई उपाय किये होंगे या इनके द्वारा या किसी भी उद्योग द्वारा स्थानीय जनता के लिए कोई सामाजिक गतिविधी की गई हो, ऐसा भी नजर नहीं आता। जिस प्रदूषण और बदबू को देख अधिकारों नाक सिकोड़ कर चलते है वहा उद्योग क्षेत्र के लोग अपनी जीवन की दिन काट रहे है। मगर प्रशासन प्रदूषण नियंत्रण को लेकर कोई भी कारगर कदम नहीं उठा पाया है। क्षेत्र की जनता यहां बढ़ते प्रदूषण से भारी परेशानी में है। क्षेत्र को रोजगार देना तो दूर की बात है यहां के उद्योगपति क्षेत्र की जनता के साथ किसी भी सामाजिक सरोकार से वास्ता भी नहीं रखते हैं
पत्रकार
सूरज कुमार
साईंस वाणी न्यूज
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